थर-थर काँपे व्यथित तिरंगा / हरिवंश प्रभात
थर-थर काँपे व्यथित तिरंगा, अश्रु पुष्प गिराता है
पावन दिवस कलंकित कर, जब भ्रष्ट कोई फहराता है।
अमर शहीदों की कुर्बानी रोज़ तिरंगा याद करे
भटके उन नेताओं से क्या बोले क्या फरियाद करे,
तन-मन-धन से राष्ट्रद्रोह का अंधकार गहराता है।
पावन दिवस कलंकित कर......
मूल्यों में है पतन निरंतर जर्जर घायल जनशक्ति
खोया है विश्वास हमारा संकट में है अभिव्यक्ति
विश्व पटल पर स्थापित यह लोकतंत्र भहराता है।
पावन दिवस कलंकित कर.......
अराजकता व्याप्त चौतरफा, बढ़ते हैं अपराधी गिरोह
कदम-कदम पर हिंसा, भय, हर ज़ुबान पर मुद्रा मोह
गांधी जब आदर्श हिंद के, किस को वचन सुहाता है।
पावन दिवस कलंकित कर......
अब विकास की कुर्सी पर बातें विनाश की होती हैं
गोद में सोयी जनता-बच्ची, घात पर घातें होती हैं
किस पर आस्था व्यक्त करें, कोई योग्य नज़र नहीं आता है।
पावन दिवस कलंकित कर......
नवयुवकों पर बढ़ा भरोसा, वतन उन्हीं के हवाले है
अंध कूप घोटालों से वे देश निकालने वाले हैं
संकट के बादल का छंटना, कहाँ ‘प्रभात’ हो पाता है।
पावन दिवस कलंकित कर......