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थर-थर कांपें गात राह के साथी सच मानो / बलबीर सिंह 'रंग'

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थर-थर कांपें गात राह के साथी सच मानो।

दूरी अब न सही जाती है,
कह कर भी न कही जाती है,
अपने मन की बात
आह के साथी सच मानो।
थर-थर कांपें गात राह के साथी सच मानो।

मेरे साथ-साथ बेचारे,
जाग रहे हैं चाँद-सितारे,
बीती जाती रात
आह के साथी सच मानो।
थर-थर कांपें गात राह के साथी सच मानो।

कब तक चातक प्यासा तरसे,
बिना दामिनी कैसे बरसे,
रसभीनी बरसात
दाह के साथी सच मानो।
थर-थर कांपें गात राह के साथी सच मानो।

ऐसे ज्वार सिन्धु में आऐ,
लहर-लहर मर्याद मिटाऐ,
तट की कौन बिसात
थाह के साथी सच मानो।
थर-थर कांपें गात राह के साथी सच मानो।