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थांरै खौळै में / सांवर दइया
Kavita Kosh से
बींटल्या रै मूण्डो लगावतां ई
लखायो म्हनै
स्सो सुख अठै ई है
अमूजो
आंधी
अर लू रा थपेड़ा
का ओळां-बिरखा री मार
कीं नीं कर सकै म्हारो
थांरै खोळै में म्हनै डर कांईं?
म्हैं
चूंघूं-धापूं
चूंघै-धापै जगत
थांरै बोबां में
क्षीर सागर है मा !