भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
थाणो / ओम पुरोहित कागद
Kavita Kosh से
कटखाणै देवता रो थान
जकै नै
धोक्यां खतरो
अर
नीं धोक्यां
घणो खतरो !
थाणै रै गेलै स्यूं
पग रोको
जे अकल है तो
इण नै
लारली गळी स्यूं धोको !