भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
थारी चिरळाट / अर्जुनदेव चारण
Kavita Kosh से
थारी चिरळाट
जागै सुरसती
रचण लागै साम
सांसां सूं
पीड़ पीवती पीढियां
मांगै नुंवौ छन्द
मां थनै
फेरूं बिलखणै पड़ैला