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थारै गयां पछै / नीरज दइया
Kavita Kosh से
जद-जद थारी आंख सूं
झरिया है आंसू
बां तांई
पूग्या ई’ज है हरमेस
म्हारी ओळूं रा हाथ ।
थनै उणां रो परस
हुवै का नीं हुवै
पण म्हैं सदीव उखणियो है
थारै आंसुवां रो भार !
थारी उडीक मांय
थारै पछै
कीं बाकी नीं है
थारै अणदीठ आंसुवां नै टाळ !