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थारौ आंवणौ / मीठेश निर्मोही
Kavita Kosh से
बुहारियां घूमर घाल
बुहारण लागी
आंगणौ।
झीणी ढाळ
ओळू उगेर
घट्टी मांडदी
म्हैं।
पण हिचकी रै हिबोळां
चेतौ बिसरगी।
रोटी माथै पड़तां ई
रोटी
हंसण लागौ तवौ।
मेड़ी रै छाजै
मीठौ बोलण लागौ
काग
वाह रे!
म्हारा धिन भाग!