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थारौ मुळकणौ ई / वासु आचार्य
Kavita Kosh से
म्हैं धड़ाम सूं पड्यौ
थरथरायग्यौ हौ रूं रूं
अधमर्यौ‘ई तो हुयग्यौ हो
ठीक चौराये बिचाळै
जीवण रै
बी कड़ै-घणै कड़ै
अर दौ रै बगत री
गैरी पीड़ सूं गरळावतै
खण मांय
थ्यावस रो समद
थारौ मुळकणौ
अणछुवै-थारै मुळकणै रो
बो अरस-परस
सैचन्नण हुयग्यौ हो
अंधारै सूं लबालब
मन रो आभो
भरीजग्यौ हो-लै‘रा लैवतै
म्हैं-केई ताळ ज्यूं
सूको हो-जको सदिया सूं
म्है हुयग्यौ हो-हर्यौ भर्यौ
बरसां सूं
खड्यौ जको-कैई ढूंढ दांई
रिन्धरोई रै खूणै मांय
बदळग्यौ-सौ कीं
थारौ मुळकणौ‘ई