भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

थार में पै'लो बिरवो / नरेन्द्र व्यास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कितो बेकळ होयो होसी
जद बरस्यो होसी
पै'लो बादळ
हब्बीड़ उपड्यो होसी
आभै में
अर टळकी होसी
अखूट धार
मोकळा जळाव्हाळा लियां
जूण नै पसारण सारू
अबोट धरा माथै !

कित्ती बेकळ रे ई होसी
मुरधरा
जद कठै ई जाय र
उपड़ी होसी एक नदी सूं
पै ली धार
अनै सिरज्यो होसी
पै लो बिरवो
थार में
धाड़फाधड़!