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था कहा प्राण! तुमने मुझसे, “ढल रही यामिनी ढला करे / प्रेम नारायण 'पंकिल'

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था कहा प्राण! तुमने मुझसे, “ढल रही यामिनी ढला करे।
तुम नयन मूँद लो, अधर चूम लूँ मैं, यह लीला चला करे।
तुम मृदुल पीत जलजात सुमन-सी मेरी बाहों में झूलो।
मत कभीं स्वप्न में भी प्रेयसि! इस प्रेम-भिखारी को भूलो।
कर-अंगुलि-बीच लपेट उरज-पट कुन्द-हास से भरो अधर।
छीने न काल नित चले हमारा मिलन वल्लभे! जीवनभर”।
यह रीति निभा जा, आ, विकला बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥143॥