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था जिसका मेरे दिल को मुद्दतों से इंतज़ार आई / शोभा कुक्कल

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था जिसका मेरे दिल को मुद्दतों से इंतज़ार आई
मचा है शोर हर जानिब बहार आई बहार आई

उठाया क़हर किल्लत का बहुत दिन हम गरीबों ने
मुसीबत अब ये आई है कि महँगाई की मार आई

सुकूं दिल का, नज़र का चैन, जीवन की सभी खुशियां
हमारी ज़िन्दगी इक मोड़ पर क्या क्या न हार आई

वो खाते थे क़सम हर वक़्त रिश्तों को निभाने की
बड़े मजबूत रिश्ते थे ये अब कैसे दरार आई

किरन उम्मीद की हमको नज़र आती रही हर दम
मगर हर रोज़ ही अपने मुक़द्दर में तो हार आई

वही तस्वीर छुप छुप कर जिसे देखा था बचपन में
हमारे सामने रह रह के वो ही बार बार आई

हमारी बेक़रारी काश कोई देखता उस दम
हवा के दोश पर याद उनकी जब होकर सवार आई

जो सोचा हमने महँगाई का कारण एक दिन 'शोभा'
भ्रष्टाचारियों की सामने पूरी क़तार आई।