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था मेरा सा, मगर मेरा नहीं था / आलोक यादव
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था मेरा सा, मगर मेरा नहीं था
वो था तो दूर, पर इतना नहीं था
उसे क्यों चाहता था तोड़ना वो
वॊ बंधन जॊ कभी बाँधा नहीं था
नहीं वो मिल सका ये है हक़ीक़त
कहूं कैसे उसे चाहा नहीं था
उसे फ़ुर्सत तो थी, चाहत नहीं थी
था वो मसरूफ़ पर इतना नहीं था
जिए हैं दर्द और आंसू पिए हैं
कहाँ रोता, तेरा कांधा नहीं था
तुम्हारा काम था तुम कर गये हो
हमें दिल तोड़ना आता नहीं था
जून 2013
प्रकाशित - पाक्षिक पत्रिका 'सरिता' (दिल्ली प्रेस) जून (प्रथम) 2014