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थिरकता है जल / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
एक रेगिस्तान
पसरा जा रहा है
सूखती इस देह पर।
पर एक इस में आत्मा भी है
गहरे कुएँ-सी
और यह डोल मेरा प्रेम
जिस में उतर भर आता
बारम्बार
शीतल, मधुर जल से।
तले में देर तक
वह थिरकता है जल
प्रेम की स्मृति की सिहरन।
(1985)