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थिरकते पुतले / विष्णुचन्द्र शर्मा
Kavita Kosh से
राजस्थान के ये पुतले
कब भाला रखकर ज़मीन पर
जंभाई लेंगे!
कब, हाथी पर बैठे राजकुमार
सड़क़ पर चलेंगे!
कब, घाघरा पहन गूजरी
मुँह फुलाए गणेश से कहेगी
‘आओ नाचो’।
थिरकते हुए पुतले
अब तोड़ रहे हैं ड्राइंगरूम का सन्नाटा
मैं सबके साथ हँस रहा हूँ...।