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थी जीवन की कश्ती समय के सहारे / रंजना वर्मा

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थी जीवन की कश्ती समय के सहारे।
न पूछो कि दिन हमने कैसे गुजारे॥

चलो एक डुबकी लगा लें नदी में
लहर कर रही देर से है इशारे॥

अजब है ज़माना नहीं कोई अपना
मगर एक दूजे के सब हैं सहारे॥

छुअन प्यार की है वह दामन में लिपटी
जो छू कर थी आयी बदन को तुम्हारे॥

बड़ी खूबसूरत है उल्फ़त की बाज़ी
जो हारे वह जीते जो जीते वह हारे॥