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थूं-5 / रामेश्वर गोदारा ग्रामीण
Kavita Kosh से
बगै है
रळकती रेत
थां रै बेग सूं
थूं ई जाणै
म्हैं ई जाणू
आ एक रुत है
छेकड़
पाणी तौ
निवाण सिर ढळसी !