भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
थूं कद जीवती ही मां / अर्जुनदेव चारण
Kavita Kosh से
थूं जीवती कद ही मां
म्हारौ बाप
ले आयौ परायी नार
भारजा रौ भरम
किरच किरच होय बिखर गयौ
थूं तो
उण दिन ई मरगी ही
मां
थारौ जायौ
थारी छाती पग देवतौ आयौ
नटगियौ आपरी ओळखांण सूं
ओळखांण
जकौ थूं दीनी ही
मां थारौ मरणौ तौ जुग रौ मरणौ हैै
जुड़ियोड़ी कड़ियां तूटती देखण नै
आंख तौ ही
नीजर नी ही मां
थारौ घर
धणी री आंख मांय बसतौ हौ
अर वो
फेर लेवतौ मूंडौ
जंचती जद
छीणां रै नीचे काटी जूंण
उणनै घर मत कै मां
घर तौ एक नाम है भरोसै रौ
जकौ
चंवरी में बैठतां ऊगियौ हौ
थनै तौ
ऊभी लाया हा मां
आडी काढण नै
मां
थूं जीवती कद ही