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थूहर / राधावल्लभ त्रिपाठी
Kavita Kosh से
नहीं हैं नीम, पीपल और बड़ के
बड़े-बड़े पेड़
देवदारु की तो
कथा ही दूर छूट गई
दूर-दूर तक
चिलचिलाती धूप और
लीलने को बढ़ा आता रेत का सागर
सुरसा की तरह मुँह फैलाए ।
इस मरुस्थल से लड़ रहा है
एक अकेला थूहर ।