भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

थे हुवो जणा घर, घर लागै / सांवर दइया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

थे हुवो जणा घर, घर लागै
नींतर भींतां सूं डर लागै

रैवो थे लुक’र जमानै सूं
ईं जमानै री निजर लागै

रुस्योड़ा हा, राजी होग्या
थांरी बात में असर लागै

थां सूं कांई छानै राखां
बिना ‍कह्‌या थांनै खबर लागै

डील परस रो बखाण कांई
आ मुळक मीठी जबर लागै