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थै जाणौ थांरो जाणै राम / मोहम्मद सद्दीक

थै जाणो थांरो जाणै राम
कवि कलम रो सबद धरम रो
सांची बात लिखण रो काम।

दिन में धूळ उडै गळियां में
रात सरपणी सागी है
धोळ फूलिया धूड़ चटावै
मिनखा जूण अभागी है
धिरक जमारो मिनखा चारो
रोज कुटी जै सामो-साम

थे जाणो थांरौ जाणै राम।

काळ-अकाळ री चरभर मंडगी
चाब चबीणो थांरो है
दुभरिया दिन रात लगालै
मिनख मोतरो चारो है
सुख रो मोल करै सब कोई
दुख में कुण सो आवै काम।
घर में सांप पळै सदियां सूं
सरप-धरम तो सागी है
काळबेळिया बीण बिसरग्या
सांप सळीटा बागी है
मसळ मूंडकी द्यो फटकारो
करणो पड़सी काम तमाम
गळी गळी में अलख निरंजन
आखर सब नै करणो है
गांव नगर में मस्तक भंजन
अन्त मजल पर मरणो है
आछै घर की आब उतरगी
सांच बखाणो खावो डाम।

आंख्यां मीच अंधारो मतकर
जाग जुगत री बेळा है
मिनखा जूण जुलम रै सरणै
लोग लंफगा भेळा है
दिन धोळै जद लाज लुटीजै
घर को घर सगळो बदनाम
थै जाणो थांरो जाणै राम।