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थोड़ा-सा वक़्त / मणि मोहन

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थोड़ा-सा वक़्त
गला दिया है उसने कपड़ों के साथ
एक बदरंग बाल्टी में

थोड़ा-सा धूसर वक़्त
(जाने किस कपड़े ने छोड़ा है रंग)
सूखने के लिए डाल दिया है
आँगन में बंधी रस्सी पर

थोड़ा-सा वक़्त
बच्चों के टिफिन और बस्ते के साथ
चला गया है स्कूल

अभी-अभी उफनकर बहा है
गैस-स्टेण्ड से सिंक की तरफ
थोड़ा-सा वक़्त

थोड़ा-सा वक़्त
आज फिर वह रखकर भूल आई
छत्त पर सूख रहीं
लाल मिर्ची के पास

घर के किसी कोने में
उसके हाथ से छूटकर
टनटनाता हुआ
अभी-अभी गिरा है
थोड़ा-सा वक़्त

अपनी सृष्टि के ब्रह्माण्ड में
वह सदियों से घूम रही है
वक़्त की क्षत-विक्षत लाश उठाए

सदियों से
गिर रहा है वक़्त
यूँ ही क़तरा-क़तरा ।