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थोड़ा-सा संकोच / शुभम श्रीवास्तव ओम
Kavita Kosh से
चेहरा हुआ
ओढ़कर मेकअप
एक अदा से वह मुस्काती।
हाव-भाव में
चाल-चलन में
कुछ फूहड़ता है
थोड़ा सा संकोच
साथ उधड़न के
जुड़ता है
देह-भाव
अश्लील इशारे
करती भी है और लजाती।
शोभा-सभा
वस्तु बनकर सब
सुनना-सहना है
कुछ हाथों का
छू लेने की
हद तक बढ़ना है
औरत कहना
भूल चुकी है
खुद को केवल देह बताती।
पर हैं
पिंजड़े हैं
उड़ान की निश्चित दूरी है
कितनी टीस
घुटन कितनी
कितनी मजबूरी है
आग-आग
आँखों के आगे
एक पैर पर भूख नचाती।