भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
थोड़ी ख़ुद्दार सी ज़ात है / सिया सचदेव
Kavita Kosh से
थोड़ी ख़ुद्दार सी ज़ात है
बस यहीं मेरी औकात है
क्या कहूँ? आपकी बात है
आपका ग़म भी सौगात है'
तुम मिले हो तो ऐसा लगा
ज़िंदगी से मुलाक़ात है
आँखों आँखों में है गुफ़्तगू
ये अभी तो शरुवात है
ख़ूबियाँ मुझ में आये नज़र
तेरी नज़रों की ख़ैरात है
अब्र की ज़द में चाँद आ गया
आँसुवों से भरी रात है
ज़र्रे ज़र्रे में पिन्हा है तू
जगमगाती तेरी ज़ात है