भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
थोड़ी सी आग उसके भी सीने में डाल दे / अशोक 'मिज़ाज'
Kavita Kosh से
थोड़ी सी आग उसके भी सीने में डाल दे
मुझको भुलाने वाले को मेरा ख़याल दे
कुछ फ़ायदा न होगा न माने तो रो के देख
दो चार बूँद ओर समन्दर में डाल दे
आवाज़ दे के देख चली आयेगी बहार
ख़ामोशियों को बोलते लफ़्जों में ढाल दे
हल ढूँढने में अपनी सभी उम्र फूँक दें
इन पीढ़ियों को ऐसे न जलते सवाल दे
उस ज़ख़्म के लहू से मैं लिखता हूँ हर ग़ज़ल
ऐसा न हो कि कोई वो खंज़र निकाल दे
अपना सफ़र ‘मिजाज’ ज़ियादा तवील है
क़दमों को अपने और हवाओं की चाल दे