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थोपते हैं ग़ैर पर जो अपनी ज़िम्मेदारियाँ / शुचि 'भवि'
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थोपते हैं ग़ैर पर जो अपनी ज़िम्मेदारियाँ
झेलते हैं लोग वो ख़ुद बाद में दुश्वारियाँ
जैसे आये थे यहाँ वैसे ही जाओगे वहां
चाहे कर लो लाख ऐ इन्सान तुम तैयारियाँ
उसकी लाठी में कभी आवाज़ होती ही नहीं
क्या कभी फूली फली हैं आज तक अय्यारियाँ
आदमी इस फ़लसफ़े पर चल पड़े तो खुश रहे
ज़िन्दगी हंसती रहे हरदम रहें किलकारियाँ
तोड़ना मत दिल किसी का भूल से ‘भवि’ तुम कभी
मुश्किलों से ही यहाँ मिलती हैं सच्ची यारियाँ