भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दंगा और दादी माँ / मीठेश निर्मोही
Kavita Kosh से
अंगीठियाँ, चूल्हे अनसुलगे ही रहे
सुलगता रहा दादी माँ का दिल
जब रह-रह कर
उठा था धुआँ
मेरे शहर से।