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दक्षिण धाम / जतरा चारू धाम / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
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समय संक्रमण, अतिक्रमण नहि करब, चलब अबिराम
उत्तर-दक्षिण सन्धि सगमी मठ-मन्दिर अभिराम।।22।।
माँझ साँझ यदि पड़य, कदाचित विजयानगरम् जाय
विद्यारण्य बुक्क - हरिहर परिसर पर माथ झुकाय।।23।।
द्रविड निविड़, आतापी-तापी मुनि अगस्त्य जत व्यस्त
सिखब तामिलक अमिल कड़ी कड़गम सरिगम स्वर न्यस्त।।24।।
तखन चलब पुनि सागर-तीरे दक्षिण मलय समीर
जतय ज्वलित आग्नेय त्रिलोचन-दृष्टि त्रिकोणी तीर।।25।।
लका कंचन क्षार राशि क्षारम्बुधि जतय विलीन
नल नीलक रचना वैभव जत सेतुक शेष अलीन।।26।।
जलधि लंघनक, सेतु बन्धक जनि’ बल सहज उपाय
रामेश्वरम् महामन्दिर अछि सुन्दर भूधर राय।।27।।
स्वयं प्रतिष्ठित कयलनि निष्ठा - सहित दाशरथि राम
शकर पूजित, पूजिअ भरि - भरि गंगाजली ललाम।।28।।