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दफ़्तर-दफ़्तर जैसा न हो / तेज राम शर्मा
Kavita Kosh से
साफ़ हवा पहुँचे
हर कोने में
दफ़्तर का कोई कोना
दूषित न हो
खिड़कियाँ हों
हर कमरे में
उजाला पहुँचे
हर फ़ाईल तक
अंधे की लाठी हो दफ़्तर
न हो कोई शेर
न अजगर न लोमड़ी
बेखटके दस्तक दे
दरवाज़े पर खरगोश
सोफ़े पर बैठा हो मेमना
दफ़्तर में
कुर्सी हो स्टूल हो
मेज़ हों कम
उनमें न हो दराज़
फ़ाईलें सब मेज़ पर हों
चींटियाँ निबटाती हों फ़ाईलें
अलमारी हो
पर न छुपा हो उसमें किसी का साहस
न ही किसी का डर
भाग्य दबा न हो किसी का
घड़ी हो
चाहे हाथ में
चाहे मेज़ पर
चाहे टंगी हो दीवार पर
पर क़ैद न हो समय दफ़्तर में
दफ़्तर दफ़्तर जैसा न हो
न हो खेल का मैदान
न पिकनिक पार्क
न बाज़ार के माथे पर लिखें हो दाम
इतना उजला हो कि
दफ़्तर दफ़्तर जैसा हो।