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दफ़्तर के बाद-३ / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
टुकड़े-टुकड़े,
आ-आ कर जुड़े
आदमक़द हो गए
फिर हम
निचुड़े-निचुड़े
टुकड़े-टुकड़े ।
सीधी कर झुकी कमर
हाथ-पाँव फैलाए
छोड़ी कुर्सी
मृत दिन की चिता जला
दृष्टि घुमाई, तोड़ी
मातमपुर्सी
मुँह से तारीख़ नोंच कर
कहकहे उड़े
आदमक़द हो गए
फिर हम
सिकुड़े-सिकुड़े
टुकड़े-टुकड़े...