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दफ़्तर के बाद-3 / रमेश रंजक
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झाला-सा दिया टहनियों ने
कॉफ़ी की गन्ध ने बुलाया
लेकिन मैं ठहर नहीं पाया
दिन भर की बुनी थकन पहने
ख़ुद को महसूस किया भारी
एड़ी से भाल तक अछूती
पारे-सी चढ़ गई खुमारी
झटका-सा दिया धमनियों को
भीतर का छन्द कुनमुनाया
लेकिन मैं ठहर नहीं पाया