भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दफ़्तर / तुलसी रमण
Kavita Kosh से
एक साँचों का घर है
जिसके अलग-अलग आकार के
अनेक साँचों में
एक ही आदमी रहता है
हर सुबह
सायरन बजने पर
साचों के के घर में घुसता है
और दिन भर
हर साँचे के आकार में
फैलता और
सिकुड़ता जाता है
सबसे बड़े साँचे से
सबसे छोटे साँचे की ओर
आदेश का दरिया
बहता है
सबसे छोटे साँचे से
सबसे बड़े साँचे तक
सर-सर हवा
निसरती है