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दम्भ / शशि सहगल
Kavita Kosh से
पहाड़ की ऊँचाई ने
बहुत छोटा कर दिया मुझे
गर्दन की हड्डी
उतना भी न उठ पाई
कि देख सकूँ पूरा पहाड़
और मैं पानी-पानी हो
अपने में
और ज़्यादा सिमटती गई।