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दम घुटा जाता है जहरीली हवाएं हो गईं / उर्मिल सत्यभूषण

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दम घुटा जाता है जहरीली हवाएं हो गईं
किस तरफ जायें कि धूमिल सब दिशाएं हो गईं

नयन में कुछ ख़्वाब थे, संकल्प थे निर्माण के
सपन घायल हैं कि धूसर कल्पनाएं हो गईं

जोश था, कुछ कर गुजरने की तमन्ना दिल में थी
चुक गया उत्साह कुंठित भावनाएं हो गईं

स्वार्थों की होड़ में खुद ही भ्रमित है रहनुमा
सेवकों में संचयन की कामनाएं हो गईं

हर कहीं अंधेर गर्दी डस गई विश्वास को
रास्तों पर, मंज़िलों पर वंचनाएं हो गईं

खोखली बुनियाद पर उर्मिल यह गढ़ कैसे टिके
अंत है नज़दीक ये संभावनाएं हो गईं।