Last modified on 22 जुलाई 2013, at 13:38

दयार-ए-ग़ैर में कोई जहाँ न अपना हो / अली सरदार जाफ़री

दयार-ए-ग़ैर में कोई जहाँ न अपना हो
शदीद कर्ब की घड़ियाँ गुज़ार चुकने पर

कुछ इत्तेफ़ाक़ हो ऐसा कि एक शाम कहीं
किसी एक ऐसी जगह से हो यूँ ही मेरा गुज़र

जहाँ हुजूम-ए-गुरेज़ाँ में तुम नज़र आ जाओ
और एक एक को हैरत से देखता रहे