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दया की जो आदत तुम्हारी न होती / रंजना वर्मा

दया की जो आदत तुम्हारी न होती
तो भक्तों की हालत सुधारी न होती

भला कौन पग रज की महिमा बताता
जो पत्थर अहिल्या सी नारी न होती

दया - दान देते दया - सिन्धु कैसे
सुदामा की विपदा निहारी न होती

हो तुम लाज रखते पता किसको होता
द्रुपद की सुता यदि पुकारी न होती

न तरती तेरा नाम लेकर के गणिका
अगर स्नेह की गाँठ भारी न होती

उसे बाँध लेता जगत बन्धनों में
अगर दिल से मीरा तुम्हारी न होती

पुराणों ने गाया विरद जो न होता
तो वृषभानु कन्या दुलारी न होती

न तुम टेर सुनते अगर भक्त - जन की
किसी को मधुर भक्ति प्यारी न होती

अमिट प्यास से छटपटाता न यदि मन
सरस रस भरी नाम - झारी न होती