भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दरख्त री आंख / प्रमोद कुमार शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


दरख्त रो फूटणो
फूटणौ है सुपना रौ
आदमी रौ फूटणौ
टूटणौ है सुपना रौ।

आ देख:
फूटण लाग री है
नीम री डाळ !
देख-कै फूटै है आंख,
तो फूटै है सुपना भी।
दरख्त कदै आंधो नी हुवै।