भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दरपन सा यह देश हमारा / मधुसूदन साहा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सबसे सुस्मित
सबसे दीपित
दरपन सा यह देश हमारा।

इसमें प्रतिबिम्बित अतीत के
गौरव का दिनमान सम्मुनत,
कनक अक्षरों में अंकित हैं
मानव के बलिदानी संवत,
प्रतिभासित इसमें अंतमर्न,
निखिल सृष्टिगत जड़-संचेतन,
महामनीषी
के निगूढ़तम
दर्शन-सा यह देश हमारा।

उत्तर में गिरिराज हिमालय
सदियों का यह अमिट धरोहर,
सुबह स्निग्ध किरणों से शोभित
लगता है यह मदिर मनोहर,
विमल भावनाओंसी नी:सृत,
शंभू-जटा से धारा अमृत,
शैल-शृंग पर
बैठे मनु के
चिन्तन-सा यह देश हमारा।

मिटाने देंगे नहीं बिखर कर
हम संसृति का यह वृंदावन,
यमुना तट पर वंशी की धुन
जहाँ गूँजती रहती हर क्षण,
अर्पित हम तन मन कर देंगे,
भारत का क्रंदन हर लेंगे,
कभी न क्षण भर
भी उजड़ेगा
नंदन सा यह देश हमारा।