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दरमियाँ कुछ फ़ासले रखता तो है / रंजना वर्मा
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दरमियाँ कुछ फ़ासले रखता तो है
बात दिल की खुद से ही कहता तो है
बुत बना कर लोग तुझ को पूजते
तू गरीबों की सदा सुनता तो है
है जमी करती बहारों को विदा
पास उसके याद का पत्ता तो है
जगमगाते लाख दीपक देख कर
ये अँधेरा आज कुछ सहमा तो है
रोज खिलकर फूल मुरझाता रहा
आज रब के नाम पर टूटा तो है
हैं नहीं आग़ोश में तो क्या हुआ
तू सितारों में कहीं दिखता तो है
अश्क़ ने जो दास्ताने ग़म लिखी
उस में मेरे नाम का चर्चा तो है