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दरया को और कोई बहाना तो है नहीं / मुज़फ़्फ़र हनफ़ी

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दरया को और कोई बहाना तो है नहीं
कहता है चल तेरा ठिकाना तो है नहीं

अब कहे दिया तो बात निभाएंगे उम्र भर
हालांकिं दोस्ती का ज़माना तो है नहीं

लावा सा खौलता है सदा अंदरून ऐ ज़ात
आतिश फ़िशाँ ग़म का दहाना तो है नहीं

दीवाना है जो उस से तुवक़ूॊ रखे कोई
आखिर वो रहनुमा है दीवाना तो है नहीं

थोड़ी सी रौशनी है उसे जो भी लूट ले
जुगनूं मिआं के पास खज़ाना तो है नहीं

सब जाए हादसा से बहुत दूर गए
ज़ख़्मी कि चीख कोई तराना तो है नहीं

चुभ जायें जाने किस को मुज़फ्फर हमारे शेर
अपना भी कोई ख़ास निशाना तो है नहीं