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दरवाज़े खड़े हुए लोग / सत्य मोहन वर्मा

दरवाज़े खड़े हुए लोग,
चौखट में जड़े हुए लोग

सुर्यगीत लिखने का मन,
कालिख में मढ़े हुए लोग

सोने के पिंजरे की धुन,
तोतों से पढ़े हुए लोग

बंजारे सपनों का पंथ,
खूँटी से गड़े हुए लोग

सिरहाने क्रांति का कफ़न,
मुर्दों से पड़े हुए लोग

रेत में छिपा कर के सिर,
आंधी से लड़े हुए लोग ।।