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दरवाजा कोई घर से निकलने के लिए दें / शीन काफ़ निज़ाम


दरवाजा कोई घर से निकलने के लिए दे
बेखौफ कोई रास्ता चलने के लिये दे

आंखो को अता ख़्वाब किये शुक्रिया, लेकिन
पैकर भी कोई ख्वाबों में ढलने के लिए दे

पानी का ही पैकर किसी परबत को अता कर
इक बूंद ही नदी को उछलने के लिये दे

सहमी हुई शाखों को जरा-सी, कोई मुहलत
सूरज की सवारी को निगलने के लिए दे

सब वक्त की दीवार से सर फोड़ रहे है
रोजन की कोई भाग निकलने के लिये दे

सैलाब में साअत के मुझे फेंकने वाले
टूटा हुआ इक पल ही संभलने के लिये दे

महफूज जो तर्तीबे-अनासिर से हैं असरार
तो खोल को इक आंच पिघलने के लिए दे

तखईल को तखलीक की तौफीक अता कर
फिर पहलू से इक चीज निकलने के लिये दे