दरवाज़े की खोलने उठी है ज़ंजीर
लौटा हूँ कहीं से जब भी पी कर किसी रात
हर बार अँधेरे में लगा है ऐसा
जैसे कोई शमा चल रही है मेरे साथ
दरवाज़े की खोलने उठी है ज़ंजीर
लौटा हूँ कहीं से जब भी पी कर किसी रात
हर बार अँधेरे में लगा है ऐसा
जैसे कोई शमा चल रही है मेरे साथ