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दरवाजे की खोलने उठी है ज़ंजीर / जाँ निसार अख़्तर
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दरवाज़े की खोलने उठी है ज़ंजीर
लौटा हूँ कहीं से जब भी पी कर किसी रात
हर बार अँधेरे में लगा है ऐसा
जैसे कोई शमा चल रही है मेरे साथ