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दरवाजे - 4 / राजेन्द्र उपाध्याय
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					मेरे लिए सबसे पहले एक स्त्री ने खोला दरवाजा
तब से हर दरवाज़ा खुलता चला गया
मैं बढ़ता ही चला जा रहा हूँ। 
कहीं न कहीं कोई न कोई स्त्री हमेशा रही
जिसने मेरी दस्तक सुनी
और दौड़ी चली आई। 
अगर स्त्रियाँ न होती तो शायद मेरे लिए
बंद ही रहते इस दुनिया के दरवाजे। 
एक स्त्री ने ही बंद किया मेरे लिए
आखिरी दरवाजा।
	
	