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दरवाजे - 5 / राजेन्द्र उपाध्याय
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					मकानों से भी महंगें उनके दरवाजे होते हैं
कोई उन्हें खोलने से भी डरता है। 
लकड़ी के, लोहे के, शीशे के, नक्काशीदार होते हैं दरवाजे
चांदी के सोने के भी होते हैं। 
भगवान के दरबार के भी महंगें होते हैं दरवाजे
कपाट बंद होते हैं जब भगवान सोते हैं। 
बंद दरवाजों में होती हैं मंत्रणाएँ
लिखी जाती हैं राजाज्ञाएँ
फिर उनको प्रसारित किया जाता है
भोंपू बजा बजाकर। 
ऐसा तो यह संसार है
जिसका एक दरवाज़ा स्वर्ग में खुलता है
तो एक नर्क में
एक पाताल में तो एक सातवें आसमान में। 
कोई कोई दरवाज़ा नदी की ओर खुलता है 
तो कोई समुद्र की ओर भी
कोई मस्जिद की ओर तो कोई मंदिर की ओर।
	
	