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दरश के लिये आज जिद पर अड़ा है / रंजना वर्मा

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दरश के लिये आज जिद पर अड़ा है
नहीं मानता दिल दिवाना बड़ा है

सदा पूर्ति का नीर हैं डालते पर
भरा ही नहीं कामना का घड़ा है

कभी तो खुलेगा दया द्वार उस का
हृदय आस ले श्याम के दर खड़ा है

हरी डाल से तोड़ पाना है मुश्किल
मगर सूख के पात खुद ही झड़ा है

कुदाली उठा प्यार की खोद लाओ
हृदय भूमि में प्रीति का धन गड़ा है

न बदलेगी सूरत किसी फ्रेम से भी
बना काठ का है या मोती जड़ा है

मिलेगी तुम्हे जीत बस हौसलों से
न देखो कि संघर्ष कितना कड़ा है