दरियाओं पर अब्र बरसते रहते हैं
और हमारे खेत तरसते रहते हैं
अपना ही वीरानी से कुछ रिश्ता है
वरना दिल भी उजड़ते बसते रहते हैं
उनको भी पहचान बनानी है अपनी
औरों पर आवाज़ें कसते रहते हैं
बच्चे कैसे उछलें, कूदें, जस्त भरें
उन की पीठ पे भारी बसते रहते हैं
उनके दिल में झाँकें इक दिन हम आलम
जिन के हाथों में गुलदस्ते रहते हैं