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दरिया बहता रहता है / प्रफुल्ल कुमार परवेज़

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दरिया बहता रहता है
साहिल तकता रहता है

कितने काले बादल हों
चांद निकलता रहता है

तुम चाहो तो रुक जाओ
जीवन चलता रहता है

पैसे वालों पे अक्सर
पैसा हँसता रहता है

मैं उसके सदक़े जाऊँ
हरदम हँसता रहता है

पत्थर के अन्दर ‘परवेज़’
कौन पिघलता रहता है