भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दरीचा राह कोई देखता है / शीन काफ़ निज़ाम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दरीचा राह कोई देखता है
दिया दहलीज़ पर बुझता हुआ है

न मंज़िल है न कोई नक्शे पा' है
यहाँ तो फ़ासला ही फ़ासला है

हमारे साथ क्या-क्या हो गया है
मिला तुम से तो अंदाज़ा हुआ है

ज़माने भर को रुसवा करने वाला
मिरी ख़ातिर बहुत रुसवा हुआ है

बनाऊँगा मैं उसे से क्या बहाना
वो मेरे सब बहाने जानता है

ज़रा सी बात थी तेरा बिछड़ना
ज़रा सी बात से क्या कुछ हुआ है

किसी की ज़िंदगी हम जी रहे हैं
हमारी मौत कोई मर रहा है