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दर्जी / राजेश कमल

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आदमी तो वह तब भी नहीं था
जब दर्जी था
लेकिन मुल्क की महान परम्पराओं की व्यवस्था ऐसी थी
कि संभावनाएँ देखी जा सकती थीं
चाहे वह फ़र्ज़ी ही क्यूँ न हो

झक सफ़ेद
रंग बिरंगे
कड़क कलफदार
कपड़ों में
सलीके से कटी दाढ़ी लेकर
जब वह बी ऍम डब्लू से उतरता है
तो छटा देखते ही बनती है

आजकल उसकी दुकान का नाम
बदल गया है
एक्सक्लूसिव है
दुनिया का एकलौता
सपनों का हाट

मासूम
भोले
मूर्ख
कुछ अर्ध विद्वान
कुछ पूर्ण विद्वान
सब पट गये हैं
यहाँ से वहाँ
इस हाट में

सौदागर मुस्कुराता है
सौदागर ठहाके लगाता है
सौदागर उपहास उड़ाता है
सौदागर नाचता है
सौदागर गाता है

और खरीददारों की लम्बी-लम्बी कतारें लगी है