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दर्द-ए-दिल आज भी है जोश-ए-वफ़ा आज भी है / 'बाकर' मेंहदी
Kavita Kosh से
दर्द-ए-दिल आज भी है जोश-ए-वफ़ा आज भी है
ज़ख्म खाने का मोहब्बत में मज़ा आज भी है
गर्मी-ए-इश्क निगाहों में नहीं है न सही
मुस्कुराती हुई आँखों में हया आज भी है
हुस्न पाबन्द-ए-कफ़स इश्क़ असीर-ए-आलाम
ज़िंदगी जुर्म-ए-मोहब्बत की सज़ा आज भी है
हसरतें ज़ीस्त का सरमाया बनी जाती हैं
सीना-ए-इश्क़ पे वो मश्क-ए-जफ़ा आज भी है
दामन-ए-सब्र के हर तार से उठता है धुवाँ
और हर ज़ख्म पे हँगामा उठा आज भी है
अपने आलाम ओ मसाइब का वही दरमाँ है
‘‘दर्द का हद से गुजरना’’ ही दवा आज भी है
‘मीर’ ओ ‘गालिब’ के ज़माने से नए दौर तलक
शाएर-ए-हिंद गिरफ़्तार-ए-बला आज भी है